मासुम परिंदा उडने कि चाहत में,दुसरें परिंदों की उड़ान देखता है, उनके पंखों का फैलाव देखता है,तो बैचैन हो उठता है, अपने पंखो के घावों में दुःख को समेटा है. रोता रहता है, फिर भि उडने के सपने देखता है, वो अपनो कि सच्चाई जानता है, फिर भी झुठी उम्मिद रखता है अपनों से वो आकर उसके पंखों पर मरहम लगाऐगें उसे खुले गगन लेकर जाएेंगे.. उसकी नैनों में छुपी वो चुप्पी मुझसे बोलती है, मेरे अपनों ने कभी मेरे जज़्बातो को समझा नही, मै भी हसकर बोली बहुत कुछ है जानने और कहने के लिए कभी फुरसत से बैठो तो कुछ गुफ्तगू हो, कह लेना जो कहना हो तुम्हे मुझसे कुछ हम भी बयाँ दास्ताँ ए जिंदगी करेंगे.. By-S.Bhure.
हवी सोबत सोबतीला मनीषा अशी रुजली, न उमगले चंद्रकोरी सोबत काजव्यांची मिळाली....